Author : AKSHAY MUKUL
ISBN No : 9789388689847
Language : Hindi
Categories : HINDI
Sub Categories : NON FICTION
Publisher : WESTLAND PUBLICATIONS
साल 1920 के आरंभिक दशकों में ही व्यवसायी से आध्यात्मिक गुरु बने जयदयाल गोयन्दका और हनुमानप्रसाद पोद्दार नामक मारवाड़ियों ने गीता प्रेस की स्थापना और कल्याण पत्रिका के प्रकाशन की शुरुआत की। साल 2014 के आरंभ तक गीता प्रेस, गीता की तक़रीबन 7.2 करोड़, तुलसीदास की कृतियों की 7 करोड़ और पुराण तथा उपनिषद जैसे धर्मशास्त्रों की 1.9 करोड़ प्रतियां बेच चुका था। यहाँ तक कि अब जबकि उस जमाने की बाकी सभी धार्मिक, साहित्यिक या राजनैतिक पत्रिकाएं प्रेस अभिलेखागार की धूल खा रही हैं, गीता प्रेस से निकलने वाली पत्रिका कल्याण 2,00000 सर्कुलेशन के साथ बाज़ार में है। वहीं इसके अंग्रेजी समकक्ष कल्याण–कल्पतरु का सर्कुलेशन भी 1,00000 से अधिक है।
गीता प्रेस ने कट्टर हिंदू राष्ट्रवाद की आवाज़ को बुलंद करने के लिए एक साम्राज्य स्थापित किया और एक लाभ-आधारित तथा निर्धारणीय धर्मनिष्ठा की कल्पना की। महात्मा गांधी समेत लगभग सभी प्रमुख आवाजों और नेताओं को गो हत्या, राष्ट्रभाषा के तौर पर हिंदी का समर्थन और हिंदुस्तानी का बहिष्कार, हिंदू कोड बिल, पाकिस्तान गठन, भारत के पंथनिरपेक्ष संविधान जैसे मुद्दों पर बोलने-लिखने को बाध्य कर दिया। कल्याण और कल्याण –कल्पतरुइस तरह के सभी मामलों पर हिंदू पक्ष का प्रवक्ता था।
गीता प्रेस और इसके प्रकाशन द्वारा तैयार किये जा रहे विचारों ने हिंदू राजनैतिक चेतना और वास्तव में हिंदी जन दायरे को गढ़ने में अहम भूमिका निभाई। यह इतिहास हमें हिंदू दक्षिणपंथ की राजनैतिक सर्वश्रेष्ठता के उभार जैसे विवादित और जटिल विषय पर नई दृष्टि प्रदान करता है।
आधुनिक भारत के इतिहास में सबसे प्रभावी प्रकाशन उद्यमों में से एक रहे गीता प्रेस पर किया गया यह शोध गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ़ हिंदू इंडिया एक मौलिक, पठनीय, और गहराई से किया गया अध्ययन है। विवेकहीन उद्यमियों, शातिर संपादकों, राष्ट्रवादी विचारकों और धार्मिक कट्टरपंथियों के रूप में असाधारण ढंग से चरित्रों का निरूपण करने वाला यह अध्ययन हमारे समय का अत्यावश्यक अध्ययन है।